Wednesday, September 26, 2018

भंडारा की वास्तविकता क्या है ?

     दोस्तों भंडारा प्राचीन काल से चली आ रही एक सामाजिक परम्परा या सामाजिक सुरीति है।जो विशेष कर मानव समाज सेवा से सम्बन्ध रखती है।इस नेक प्रथा का सुभारम्भ हमारे मानव समाज में नेक प्रेरणा श्रोतों के द्वारा हुआ जिसमें हमारे अपने भगवान के प्रति श्रदया भावना से प्रेरित प्रेरणा का मुख्य स्थान था ।
     हमारे प्राचीन अविकसित समाज में गरीबी एक मुख्य समस्या थी।और गरीबी का वो आलम था कि हमारे समाज के एक बड़े तबके को 'दो जून की रोटी' मोहताज नही थी । तथा समाज में एक तबका ऐसा भी था जिसे अक्सर 'एक जून का खाना' भी नसीब नही हो पाता था,उसे खाली पेट ही सो जाना पड़ता था। हमारे मानव समाज में भूख एक बड़ी पीड़ा थी जो मनुष्य को असमय मृत्यु की ओर खींच ले जाती थी ।
     हमारे प्राचीन समाज के एक छोटे से सामर्थवान तबके में एक तबका ऐसा भी था जो भूख से कराह रहे समाज के दर्द से अनभिज्ञ नही था । अंतरात्मा की नेक प्रेरणा और अपने भगवान के प्रति श्रदया भाव से प्रेरित हो कर वही मृदु हिर्दयी तबका विशेष अवसरों पर भूख से ब्याकुल समाज के भोजनार्थ भंडारे का प्रयोजन आरम्भ किया । उस विशेष अवसर पर गरीब वर्ग को भोजन से तृप्ति द्वारा प्राप्त खुसी व अपने प्रति कृतज्ञता के भाव को महसूस कर सामर्थवान दयालु तबके को विशेष सकून व परम् आनन्द का अनुभव प्राप्त होता था । समय की उपयोगिता के आधार पर यही प्रयोजन धीरे-धीरे हमारे मानव समाज में सु रीति का रूप धारण कर लिया ।
     दोस्तों अब प्रश्न यह उठता है कि क्या आज भी भंडारे की उपयोगिता या महत्व उतना ही है जितना कि प्राचीन काल में था ? क्या आज भी हमारे मानव समाज में 'दो जून की रोटी' नसीब होना एक मुख्य समस्या है ? क्या आज भी हमारे समाज में 'भूख एक बड़ा दर्द' है ? क्या आज भी भंडारे में शामिल लोग वो गरीब होते है जो भूख की पीड़ा को महशूश करते हैं ?
    दोस्तों हमारा मानव समाज आज के समय में विकाश के कई पायदान पार कर चुका है ।आज का हमारा समाज 'दो जून की रोटी' का मोहताज नही है । पर हां आज भी हमारे समाज का एक बड़ा तबका गरीब है । आज भी गरीबी है हमारे मानव समाज में पर मुख्य समस्या रोटी नही है। मुख्य समस्या है गरीब परिवारों का पालन पोषण । आज भी हमारे समाज में पीड़ा है लेकिन वो भूख की पीड़ा नही 'बीमारी की पीड़ा 'है जो गरीबी के कारण इलाज न मिल पाने से गरीबों को असमय मृत्यू की ओर खींच ले जाती है । आज भी हमारे समाज में दर्द है लेकिन वो 'भूखे पेट का दर्द 'नही बल्कि गरीबी के कारण समय पर 'बिटिया के हाथ पीले 'न कर पाने का दर्द है । आदि न जानें कितनी समस्याओं के "दर्द "से हमारा गरीब तबके का समाज आज भी कराह रहा है ।और हम है कि प्राचीन समाज के भंडारे की सु रीति को आज भी उसी स्वरूप को ही ढोये जा रहे है जो स्वरूप शायद समय के साथ अपनी उपयोगिता खो चुका है
     दोस्तों भंडारे की वास्तविकता को समझनें के उपरांत समय के आधार पर इसकी उपयोगिता व महत्व को ध्यान में रख कर समाज में इस सु रीति के स्वरूप को बदलनें की आवश्यक्ता महसूस हो रही है । जिससे गरीब तबके को राहत व प्रायोजक तबके को वास्तविक सकून व परम् आनन्द प्राप्त हो सके तथा हमारी अपने भगवान के प्रति श्रदया भावना का विकास हो।

     धन्यवाद
     

Friday, September 14, 2018

हमारा बचपन और जीवन की वास्तविक्ता का सम्बन्ध,जानें

     दोस्तों हम सब आज भी बचपन को याद कर कितना रोमांचित हो उठते हैं।उन दिनों की याद आते ही हम अपने बचपन में खो जाते हैं।कितने खुशनुमा दिन थे वो,न कोई फिकर,न कोई चिंता,न कोई टेंशन,न कोई डर,न कोई भय आदि ऐसा कुछ भी तो बचपन में नहीं था। अहसास तो तब भी था, पर वो खुशिओं का अहसास था सुख का अहसास था- मां की गोद में लोरी सुनते हुए सो जानें का अहसास,बाप की उंगलियों को पकड़ कर चलना सीखने का अहसास,मां बाप की प्यार भरी डांट का अहसास, भाई,बहन, दोस्तों के साथ खेलनें का अहसास आदि इतना ही नही, जुगनू,तितलियों के पीछे दौड़नें की खुशी,बरसात में कागज की नाव बना कर पानी में तैराने की खुशी,चॉकलेट की खुशी , खिलौनों की खुशी,मेला जाने की खुशी,त्योहारों,ब्याह शादी आदि में नए कपड़े पहनने,मिठाइयां खाने व धूम मचाने की खुशी।हमारी मीठी नींद भी खुशिओं के सपनों से भरी होती थी। बचपन को दुख का अहसास ही नही था।
     दोस्तों जैसे-जैसे हमारा बचपन बीतता जाता है वैसे-वैसे हमारे बचपन की खुशियां हमसे दूर होती चली जाती हैं।और जुम्मेदारियों के साथ-साथ हमारे जीवन में चिंता,फ़िक्र और टेंसन बहुत सारी मुशीबतों का बढ़ना आरम्भ हो जाता है।हम शांति व सकून का अहसास ठीक से समझ भी नही पाते हैं और यह हमसे हमारे जीवन से दूर जाने के लिए मचलनें लगता है।
     उम्र के साथ जुम्मेदारियों का बढ़ना तो हमारे जीवन की वास्तविकता है, पर दोस्तों उम्र और जुम्मेदारियों के साथ चिंता,फिक्र,अशांति आदि का बढ़ना अगर हम अपने जीवन की वास्तविक्ता मान लेंगें तो यह हमारी नकारात्मक सोंच होगी।जरा सोचिए कि- क्या हम जुम्मेदारियों से मुहँ मोड़कर जीवन में कभी शांति व सकून प्राप्त कर सकते हैं? मानव जीवन की जुम्मेदारियां,उसके 'सार्थक जीवन' के पथ पर हमेशा मददगार साबित होती हैं।
     सच तो यह है दोस्तों कि हमारा मानव जीवन एक वास्तविक्ता है।हमारे जन्म के साथ हमारी वास्तविकताएं भी जन्म लेतीं हैं और हम उन्हीं वास्तविकताओं के साथ जीना आरम्भ करते हैं।हमारा बचपन वास्तविकताओं के बिल्कुल करीब होता है।परिणाम स्वरूप बचपन में चिंता,फिक्र,टेंसन, अशांति आदि का कोई स्थान नही होता है। यहाँ तक कि दुख आदि के अहसास तक को हमारा बचपन महसूस नही कर पाता है। इसी लिए बचपन को हम सब जीवन का सबसे खुशनुमा पन मानते हैं।
     जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती है बचपन का स्थान हमारी जुम्मेदारियाँ लेने लग जाती है।और धीरे-धीरे हमारा बचपन हमसे दूर होने लगता है तथा जुम्मेदारियाँ बढ़नें लगतीं हैं। जुम्मेदारियाँ निभाते-निभाते हम अनजाने में धीरे-धीरे नकारात्मक विचारों से ग्रसित होते जाते हैं जिससे हमारे जीवन की वास्तविकता हमसे दूर होने लगती है और वास्तविक्ता के साथ ही हमारी तमाम खुशियां आदि हमसे दूर चली जाती हैं।
     इस प्रकार दोस्तों हमें अगर बचपन जैसी शांति,सकून, खुशियों आदि का अहसास जीवन भर करना है तो हमें बचपन की तरह सम्पूर्ण जीवन वास्तविक्ता के करीब रहना होगा

धन्यवाद-

Monday, September 10, 2018

जीवन के रंग , वास्तविक्ता के संग (life colors , with Realism)

     दोस्तों हमारा जीवन एक रंगी नही है,सतरंगी भी नही है,हमारा मानव जीवन बहुरंगी है।अनेकों रंग है हमारे श्रेस्ट मानव जीवन के।प्रकृति में जितनें भी रंग हैं सब के सब हमारे जीवन में समाये हुए हैं।हमारे मानव जीवन के अनेकों पहलू हैं और हर पहलू का एक अलग रंग है।और उस रंग में अपार आनन्द समाया हुआ है।
     परन्तु दोस्तों,चिंता की बात तो यह है कि आज हमारा मानव समाज और हम अपने रंगविरंगे जीवन से प्राप्त होने वाले'वास्तविक आनन्द' के अहसास तक को भूलते जा रहे हैं।स्वाभाविक है कि हमारे जीवन के रंग भी फीके पड़ते चले जा रहे हैं।और रंगों के साथ हमारा मानव जीवन भी फीका होते चला जा रहा है।
     दोस्तों, हम अगर अपने जीवन में वास्तविक रंग भरना चाहते हैं तो हमें 'वास्तविक्ता' के संग आना होगा।'वास्तविक्ता' के पास आना होगा। 'वास्तविक्ता' के साथ जीवन के हर पहलू को जीना होगा।
     उदाहरण के तौर पर,हम अपने पारिवारिक व सामाजिक रिश्तों की वास्तविकता से जितना ही दूर होते चले जा रहे हैं हमारे 'जीवन के पारिवारिक व सामाजिक पहलू ' के रंग उतने ही फीके पड़ते चले जा रहे हैं।और हम उन रिश्तों के अहसास तक को भी धीरे-धीरे भूलते चले जा रहे हैं।हम रिश्तों की 'वास्तविकता' को नही महसूस कर रहे हैं तो स्वाभाविक है कि हम रिश्तों से प्राप्त वास्तविक आनन्द को कैसे अहसास कर पायेगें ।
     इसी प्रकार,हम अगर अपने 'जीवन में शिक्षा के महत्व' की वास्तविक्ता से दूर जाकर शिक्षा ग्रहण करते हैं या वास्तविक शिक्षा नही ग्रहण करते हैं तो हमारा जीवन वास्तविक शिक्षा के अभाव में बदरंग हो जाएगा और हम अपने जीवन के उस रंग से प्राप्त होने वाले वास्तविक आनन्द का अनुभव नही कर पायेगें ।
     इस प्रकार दोस्तों,हमें अगर 'अपने व अपने समाज के जीवन' को रंगों से सराबोर रखते हुए जीवन के वास्तविक आनन्द का अनुभव करना है तो हमें इस वास्तविक्ता को अपनाना ही होगा कि- जीवन के रंग , वास्तविक्ता के संग

      धन्यबाद-

Saturday, September 8, 2018

मानव जीवन की वास्तविकता और हमारा सामाजिक विकास (Reality of human life and our social development)

 
   दोस्तों आज वैज्ञानिक युग में नित्य नये आविष्कार हो रहे हैं।हम मंगल ग्रह पर कदम रखने जा रहे हैं।हमारा अंतरिक्ष में आशियाना बनाने का सपना हकीकत में बदलने जा रहा है।हमारा विज्ञान असम्भव को भी सम्भव बनाते हुये नित्य नये पायदान पार कर विकास के उच्चतम शिखर की ओर चढ़ते चला जा रहा है।हम सब खुश हैं कि हमारा विज्ञान हमारे जीवन को काफी हद तक आसान व समृद्ध बनाते जा रहा है।
     परंतु हम अगर मानव समाज के समग्र विकास की ओर चिंतन करते हैं तो हमारे सामने बहुत सारे प्रश्न आकर खड़े हो जाते हैं।दोस्तों हमारे समाज के विकास का मुख्य उद्देश्य सुख,समृद्धि,शान्ति व शकून प्राप्त करना होता है।हमारे समाज के वैज्ञानिक पहलू का विकास तो विकास के निरंतर प्रक्रिया के सिद्धान्त के तहत बराबर होता चला जा रहा है।और हम नित्य वैज्ञानिक विकास की सीढ़ियाँ चढ़ते चले जा रहे हैं।परंतु हमारे मानव समाज के मुख्य या दूसरे पहलू नैतिक पहलू का पतन उसी प्रकार निरन्तर होता चला जा रहा है।हम मानव समाज के नैतिक मूल्यों के पतन का इतिहास आज से पीछे मुड़ कर बराबर देख सकते हैं।जबकि हमारे समाज में नैतिक मूल्यों का विकास भी विकास के निरन्तर प्रक्रिया के सिद्धान्त के तहत बराबर होना चाहिये था।
     दोस्तों हमें वैज्ञानिक अविष्कारों को सामने देख कर,प्रयोग कर,समझ कर व महसूस कर बहुत खुशी होती है।हमें खुशी होती है कि हमारे वैज्ञानिक अविष्कारों नें हमारी सात समंदर की दूरी को कितना कम कर दिया है।पर क्या आज हम अपने सामाजिक व पारिवारिक रिश्तों की दूरियों को अहसास कर दुखी नही होते ? हम बहुत खुश होते हैं कि आज हम अपने समाज से कुछ एक बुराइयों,कुरीतियों को कम या समाप्त कर दिया है।परन्तु क्या हम यह देखकर दुखी नही होते कि आज हमारे मानव समाज में कितने प्रकार की कुरीतियाँ व बुराइयाँ नित्य जन्म लेतीं चली जा रही हैं ? 
     इस प्रकार दोस्तों हमारे समाज का पहला वैज्ञानिक पहलू की गाड़ी तो विकास के पथ पर आंगें बढ़ती जा रही है।परंतु दूसरे नैतिक पहलू की गाड़ी इसके विपरीत दिशा नैतिक मूल्यों के पतन की ओर जा रही है।
     इस प्रकार हमारा मानव समाज समृद्द तो होता जा रहा परन्तु नैतिक मूल्यों के अभाव में वास्तविक सुख,शांति व सकून से दूर होता जा रहा है।दोस्तों हमें वास्तविकता को समझकर मानव समाज के समग्र विकास के वैज्ञानिक व नैतिक दोनों पहलुओं की रेलगाड़ी को एक साथ विकास के पथ पर आंगें ले जाने की कोशिश करना चाहिये तभी हम सामाजिक विकास के मुख्य उद्देश्य सुख,समृद्दि, शांति व सकून को प्राप्त कर सकते हैं।
     धन्यवाद
     

Thursday, September 6, 2018

वास्तविक्ता और हमारा आज का एस सी/एस टी एक्ट (Reality and our today's SC/ST act)

     दोस्तों हम सब एस सी/एस टी एक्ट की सामान्य जानकारी से भलीभांति अवगत हैं।यह एक्ट कब लगाया गया?,क्यों लगाया गया?,उस समय इस एक्ट की क्या आवश्यकता थी?,उस समय इस एक्ट की क्या प्रासंगिकता थी? आदि प्रश्नों के पचड़े में न पड़ते हुए आज वर्तमान में इस एक्ट की प्रासंगिकता क्या है? या आज के समाज में इस एक्ट की वास्तविकता क्या है? पर चर्चा करते हैं।
     दोस्तों ये सच है कि जब एस सी/एस टी एक्ट लागू किया गया उस समय इस एक्ट की आवश्कता से हम पूर्णतया असहमत नही हो सकते हैं।परन्तु आज हमारे समाज में मानवीय सोंच का विकाश होने के कारण हालात बदल चुके हैं।आज हमारा मानवीय समाज किसी वर्ग विशेष द्वारा किसी वर्ग विशेष पर अत्याचार या शोषण बर्दास्त नही करता आज का हमारा मानव समाज धर्म,वर्ग विशेष के आधार पर आए गैप(दूरी) को कम या पर्णतया समाप्त करने की मानवीय सोंच से परिपूर्ण हो चुका है।परंतु एस सी/एस टी जैसे कुछ एक्ट हमारे उपर्युक्त मानवीय सोंच के आगे दीवार बन कर खड़े हैं और कुछ सामर्थवान सम्मानीय लोग दीवार गिराने की बजाय स्वार्थवश समय-समय पर उस दीवार को और मजबूती प्रदान करते चले आ रहे हैं।इस प्रकार किसी वर्ग विशेष के आधार पर वर्ग विशेष पर अत्याचार या शोषण की बात करना उचित नही होगा।
     वास्तविक्ता तो यह है कि सामर्थवान अपने से कमजोर पर हमेशा से अत्याचार या शोषण करते चला आ रहा है।आज के पूंजीवादी युग में हम अगर विचार करें तो वास्तविक्ता हमारे सामने आ जाती है।आज पूंजीपति सामर्थ और गरीब कमजोर है परिणाम स्वरूप आज हमारे समाज में अगर कहीं   व्यक्ति विशेष पर अत्याचार या शोषण हो रहा है तो हम सब विस्वाश के साथ कह सकते हैं कि वह विशेष कर अमीरों द्वारा गरीबों पर किया जाने वाला अत्याचारिक शोषण होता है।
     आज हम अगर वास्तव में सामाजिक विकाश के प्रति उत्सुक हैं तो हम इस वास्तविक्ता को अपनाएं, और अमीरों द्वारा गरीबों पर प्रचुर मात्रा में हो रहे अत्याचार या शोषण की रोकथाम के आवश्यक कदम उठाएं
     धन्यवाद



Wednesday, September 5, 2018

मानव जीवन की वास्तविकताएं और हमारे नकारात्मक विचार ( Realities of human life and our negative thoughts )

        मानव मस्तिष्क में  नकारात्मक ऊर्जा के संचार होने से हमारे नकारात्मक विचारों का जन्म होता है।
        दोस्तों हमारे मानव जीवन के मार्ग में जिस स्थान पर हमारे नकारात्मक विचारों का जन्म होता है ठीक उसी स्थान पर हमारे जीवन की वास्तविकताओं की मृत्यु हो जाती है।और वास्तविकताओं के मृत्यु के साथ ही हमारे जीवन में दुख,कष्ट, असफलताओं,मुश्किलों व मुसीबतों का आना प्रारम्भ हो जाता है।
           जीवन के शार्टकट की चाह हमारे मस्तिष्क में नकारात्मक ऊर्जा का संचार कर हमारी नकारात्मक सोच या विचारों को जन्म देती है हमारेे जेहन में अनेक नकारात्मक विचार जन्म लेेेने लगतेे हैं।जीवन की वास्तविकताओं से परिपूर्ण हम वास्तविक कलचर को पुराने कल्चर की संज्ञा देकर अपनेे विकास मेंं बाधक मानते हुए नए कलचर के साथ जीवन को शार्टकट मार्ग पर ले जाकर जीतेे चले जाते हैं।हम नकारात्मक विचारों के वसीभूत होकर जीवन की वास्तविकताओं से दूर होते चले जाते है।परिणाम स्वरूप हमारे जीवन के मार्ग मेंं अनेक बाधाऐं हमारा रास्ता अवरुद्ध करने लग जाती हैं।और हम तमाम मुश्किलों में घिरते चले जाते हैं।हमारा सरल व स्वभाविक मानव जीवन वास्तविक्ता का मार्ग भटक जानेे से कठिन प्रतीत होने लगता है।सकारात्मक ऊर्जा के अभाव में हम वास्तविक्ता को भुला देतेेँ हैं।
 सत्य का कोई विकल्प नहीं होता या वास्तविकता का कोई विकल्प नहीं होता, इसी प्रकार दोस्तों हमारे वास्तविक जीवन के मार्ग का कोई विकल्प नहीँ हो सकता।हमारे वास्तविक जीवन के मार्ग का कोई शार्टकट नहीं होता।     दोस्तों हमनेें देखा कि नकारात्मक सोंच हमारे मानव जीवन की प्रत्येक पहलू की वास्तविकताओं को प्रभावित ही नही करता बल्कि उसकी वास्तविक्ता को नष्ट कर देता है।जिससे हमारे जीवन के लक्ष्य ,सफलताएं,यहां तक कि हमारे मानव जीवन की सार्थकता तक स्वतः प्रभावित हो जाती है।

   धन्यवाद-


धन्यवाद

Tuesday, September 4, 2018

आओ चलें वास्तविक्ता की ओर (Let's go to Realism)

   दोस्तों "आओ चलें प्रकृति की ओर" हम इस आसाधारण वाक्य या सुविचार को अपने मानव जीवन में बहुत ही बड़ा महत्व देते हैं।परन्तु क्या हमनें कभी यह विचार किया है?कि क्या हमारा कभी भी जीवन पर्ययंत किसीभी सूरत में प्रकृति से पलभर के लियेे भी दूर हो पाना सम्भव है-वास्तव मेें सत्य तो यह है कि हम न तो जीवन के पहले कभी प्रकृति से दूर थे ,न कभी जीवन में प्रकृति से दूर होगें ,और न ही जीवन के बाद प्रकृति से दूर जा सकते हैं।
      हम प्रकृति के एक अंश हैं प्रकृति से ही हमने जन्म लिया है ,प्रकृति ही हमारा जीवन है ,और मृत्यु के बाद प्रकृति में ही हम विलीन हो जायेगेंजगत में उपस्थित हर जीवन,हर वस्तु,हर तत्व,हर अव्यय व कण- कण प्रकृति का ही अंश है।हम आंखें खोलें या बंद रखें हमें हर क्षण,हर पल प्रकृति का ही दर्शन होता है।हमें प्रकृति के शिवा कुछ दिखाई ही नही देता है।हमारा आदि भी प्रकृति है और हमारा अंत भी प्रकृति है।
      इस प्रकार दोस्तों "हमारा जीवन प्रकृति से दूर हटता जा रहा है।परिणाम स्वरूप हमारे जीवन की मुश्किलें भी बढ़ती जारही हैं। यह परिकल्पना करना पूर्णतया निरर्थक होगा।
      सच तो यह है कि हम प्रकृति नही वास्तविक्ता से दूर होते जा रहे हैं,हम अपने ही जीवन के तमाम वास्तविकताओं से दूर होते चले जा रहे हैं।जितना ही हम अपने जीवन की वास्तविकताओं से दूर जायेंगें उतना ही हमारे दुख,हमारे कष्ट,हमारे जीवन की अनेक परेशानियां व मुश्किलें बड़ती चली जायेंगीं।
      हम जितना ही वास्तविकताओं से दूर जायेंगें हमारे मानव जीवन का लक्ष्य व हमारे जीवन की अनेक सफलताएं हमसे उतना ही दूर होती चली जायेंगीं।
      हमारे मानव जीवन का आनंद,शांति व शकून का अहसास भी हमसे नाता तोड़ लेगा दोस्तों अगर हमने वास्तविक्ता से नाता तोड़ा।
      तो दोस्तों "आओ चलें वास्तविक्ता की ओर "जिससे हमारा श्रेस्ट मानव जीवन सरल ,स्वाभाविक व सार्थक हो।
                                       धन्यवाद-

Sunday, September 2, 2018

वास्तविक्ता को जानें (know tha reality)

  दोस्तों मानव जीवन की वास्तविकता को समझने से पहले वास्तविक्ता शब्द का अर्थ व महत्व तथा इसमें निहित सत्य को समझना अति आवश्यक है।
वास्तविक्ता की परिभाषा-"वास्तु सम्यक,सत्यज्ञान को वास्तविक्ता कहते हैं"वास्तविक्ता हमें मानव जीवन के प्रत्येक पहलू व हमारे जगत में  हर वस्तु,हर तत्व,हर अंश तथा हर अव्यय के सत्यज्ञान की ओर इंगित या इशारा करता है।  दोस्त्तो वास्तविकता बहुुुत ही अटपटा शब्द प्रतीत होता है परन्तु इसे जीवन के किसी भी पहलू या शब्द के साथ जोड़ देेने पर  वास्तविकता उसको अद्वितीय व उसके महत्व को आसाधारण रूप प्रदान करते हुये हमारे मानव जीवन को सरल,स्वाभाविक व सार्थक बना देता है।मानो वास्तविकता अपने अंदर इस जगत की सम्पूर्ण गहराई को छुुपाये हुये है।वास्तविकता से दूर हटकर किसीभी कार्य,या जीवन के किसीभी पहलू में सफलता हाशिल करना मुश्किल ही नही ना मुुुमकिन है।    अब दोस्तों हम विदा लेते हैं और आगें आने वाली पोस्टों के दवारा मानव जीवन की अनेेक पहलुओं की वास्तविकताओं से अवगत कराते रहेगें।और कामना करते हैैं कि आपसब वास्तविकता के पास रहें वास्तविकता के साथ रहें और जीवन के हर पहलू में वास्तविक सफलता हाशिल करेें।                     
     धन्यवाद

Friday, August 31, 2018

वास्तविकता क्या है-(What's the Reality).


  दोस्तों "मनुस्य का जीवन अन्य सभी जीवन से श्रेस्ट होता है"। स्वाभाविक है कि हमारे श्रेस्ट मानव जीवन का लक्ष्य भी उतना ही श्रेस्ट होगा जितना कि हमारा मानव जीवन।उसी लक्ष्य को प्राप्त कर जीवन को सार्थक बनाने कि चाह प्रत्येक मनुष्य को होती है।हम उसी लक्ष्य के पीछे सार्थक जीवन और निरर्थक जीवन के भय के बीच अपने जीवन को जीते चले जाते हैं।भयवश हम जीवन के अनेक शार्टकट मार्ग अपनाते हैं।परंतु हम फिरभी भयभीत बने रहते हैं।लक्ष्य तो दूर जीवनभर हम उस भय से मुक्त होने का मार्ग ही नही खोज पाते हैं।हम मानव जीवन की श्रेष्टता के अर्थ को भूलकर मानव जीवन को कठिन मानने लग जाते हैं। क्या हमारा मानव जीवन कठिन है ?या-क्या हम वास्तव में मानव जीवन को समझ हि नही पाए? मानव जीवन की श्रेष्टता हमें मानव जीवन के परम आनंद का एहसास करने वाली है।इस प्रकार हमारा मानव जीवन सरल व स्वाभाविक होना सुनिश्चित है।पर हां हम वास्तव में मानव जीवन को नहीं समझ पाए हैं।क्योंकि हम जीवनभर शार्टकट द्वारा मात्र मानव जीवन को समझने का प्रयत्न करते रहे जो अपने आप में पूर्ण नही है।                                         हमें दूसरे प्रश्न केअनुसार वास्तव में मानव जीवन अर्थात मानव जीवन की वास्तविकता को समझने की कोशिश करना चाहिए।                                                                     इसप्रकार दोस्तों हम जबतक अपने लक्ष्य की वास्तविक्ता(reality)को नही समझेेगे'तब तक हमारा किसी भी कार्य या जीवन के किसी भी पहलू में सफलता हाशिल करना मुुमकीन नही होगा। -                                                                     अब दोस्तों पहले पोस्ट से विदा लेेता हुुु अगले पोस्ट मेंं वास्तविक्ता की परिभाषा व मानव जीवन में इसके महत्व पर र्चचा करेगें।  
         घन्यवाद