Tuesday, September 4, 2018

आओ चलें वास्तविक्ता की ओर (Let's go to Realism)

   दोस्तों "आओ चलें प्रकृति की ओर" हम इस आसाधारण वाक्य या सुविचार को अपने मानव जीवन में बहुत ही बड़ा महत्व देते हैं।परन्तु क्या हमनें कभी यह विचार किया है?कि क्या हमारा कभी भी जीवन पर्ययंत किसीभी सूरत में प्रकृति से पलभर के लियेे भी दूर हो पाना सम्भव है-वास्तव मेें सत्य तो यह है कि हम न तो जीवन के पहले कभी प्रकृति से दूर थे ,न कभी जीवन में प्रकृति से दूर होगें ,और न ही जीवन के बाद प्रकृति से दूर जा सकते हैं।
      हम प्रकृति के एक अंश हैं प्रकृति से ही हमने जन्म लिया है ,प्रकृति ही हमारा जीवन है ,और मृत्यु के बाद प्रकृति में ही हम विलीन हो जायेगेंजगत में उपस्थित हर जीवन,हर वस्तु,हर तत्व,हर अव्यय व कण- कण प्रकृति का ही अंश है।हम आंखें खोलें या बंद रखें हमें हर क्षण,हर पल प्रकृति का ही दर्शन होता है।हमें प्रकृति के शिवा कुछ दिखाई ही नही देता है।हमारा आदि भी प्रकृति है और हमारा अंत भी प्रकृति है।
      इस प्रकार दोस्तों "हमारा जीवन प्रकृति से दूर हटता जा रहा है।परिणाम स्वरूप हमारे जीवन की मुश्किलें भी बढ़ती जारही हैं। यह परिकल्पना करना पूर्णतया निरर्थक होगा।
      सच तो यह है कि हम प्रकृति नही वास्तविक्ता से दूर होते जा रहे हैं,हम अपने ही जीवन के तमाम वास्तविकताओं से दूर होते चले जा रहे हैं।जितना ही हम अपने जीवन की वास्तविकताओं से दूर जायेंगें उतना ही हमारे दुख,हमारे कष्ट,हमारे जीवन की अनेक परेशानियां व मुश्किलें बड़ती चली जायेंगीं।
      हम जितना ही वास्तविकताओं से दूर जायेंगें हमारे मानव जीवन का लक्ष्य व हमारे जीवन की अनेक सफलताएं हमसे उतना ही दूर होती चली जायेंगीं।
      हमारे मानव जीवन का आनंद,शांति व शकून का अहसास भी हमसे नाता तोड़ लेगा दोस्तों अगर हमने वास्तविक्ता से नाता तोड़ा।
      तो दोस्तों "आओ चलें वास्तविक्ता की ओर "जिससे हमारा श्रेस्ट मानव जीवन सरल ,स्वाभाविक व सार्थक हो।
                                       धन्यवाद-

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