Thursday, May 28, 2020

मानव जीवन की वास्तविकता-कोरोना (covid-19) कॉल- एक आपदा भी,अवसर भी


     आज हमारा सम्पूर्ण मानव समाज जिस कोरोना वायरस नामक राक्षस से एक बड़ी जंग लड़ रहा है।उस मायावी राक्षस का जन्म चाहे जाने -अनजाने में मानव प्रयोगशाला में हुआ हो या मजबूरन प्रकृति के प्रयोगशाला में हुआ हो इसका जुम्मेदार तो कहीं न कहीं से हमारा मानव समाज ही है।विकास के मद में हमारे मानव समाज की स्वार्थी सम्वेदनाएँ जुम्मेदार हैं जो मानव जीनव की वास्तविकताओं से बहुत दूर होती चली जा रही हैं । जिसका परिणाम आज हमारा सम्पूर्ण मानव समाज भुगत रहा है।
     दोस्तों ' हर प्रकार की सम और विषम परिस्थितियों में भी जो जीव जीवन के मार्ग का नव निर्माण करने का जज्बा रखता हो उसे मानव कहते हैं 'स्वार्थ अगर मानव की सबसे बड़ी कमजोरी है तो संयम उसका सबसे बड़ा हथियार (ब्रम्हास्त्र) है।स्वार्थ का प्रतिनिधित्व हमारी आत्मा करती है और संयम का प्रतिनिधित्व हमारी अन्तरात्मा । संयम और धर्म एक दूसरे के पूरक हैं जहाँ संयम होगा वहीं धर्म, और जहां धर्म होगा वहीं संयम।
     दोस्तों इसी संयम के बल पर ही आज विषम परिस्थितियों में भी हमारा सम्पूर्ण मानव समाज कोविद-19 से डटकर मुकाबला कर रहा है। चाहे सामाजिक दूरी बनाये रखते हुए दिलों की बीच की दूरी को कम करने का संयम हो या संयम के साथ सामाजिक एकता की तस्वीरें जो हमारा समाज पेश कर रहा है  वह अवश्य आश्चर्य चकित करने वाली हैं जिन्हें देख कर हमें अपने मन में अवश्य विश्वास कर लेना hi चाहिए कि हमारा समाज इस युद्ध में विजय के आखिरी पायदान में पहुँच चुका है और शायद बहुत जल्द ही हम अपने ओठों पर विजय की अदभुद मुश्कान के साथ विजय का जश्न मना रहे होगें।
     दोस्तों इस आपदा काल की संयम की घड़ी को अगर हम एक अवसर के नजरिये से देखें तो हम इस विजय को और भी महान बना सकते हैं। तथा न जानें कितने परिवारों के मुरझाये हुए चेहरों पर मुस्कान के साथ सम्पूर्ण मानव समाज में खुशियां विखेर सकते हैं।
     दोस्तों क्या हमें पता है ? कि अनादिकाल से कोरोना वायरस ( कोविद-19 )से भी कई गुना ज्यादा खतरनाक वायरस हमारे मानव समाज के एक बहुत बड़े तबके को बीमार ही नही बनाते जा रहा बल्कि हर पल न जानें कितने रूपों में न जानें कितनी मौतों का कारण भी बन रहा है और न जानें  कितने परिवारों की खुशियां छीनकर नींदें हराम करने वाले इस वायरस की न तो अभी तक कोई वैक्सीन और न ही सेनेटाइजर की खोज हो पाई है तथा न ही सामाजिक दूरी,क्वारंटाइन,आइसोलेशन आदि उपाय कारगर साबित हो रहे हैं।इसका प्रकोप हमारे समाज में लगातार विकराल स्वरूप धारण करता जा रहा है जो हमारे सम्पूर्ण मानव समाज की दीन -हीनता व बड़े दुख का कारण बना हुआ है। 
     दोस्तों इस भयानक वायरस का नाम नशा है । इसी नशे के आरंभ काल के अलौकिक मिठाश के अहसास को ध्यान में रखकर  इस वायरस को हम स्वीट वायरस भी कह सकतें हैं। समाज में इसके संक्रमण के दुष्प्रभावों से हम सब भलीभांति परिचित हैं। समाज का हर तबक़ा, हर मानव,बच्चा-बच्चा तक भलीभांति जनता है कि यह हमारे लिए कितने रूपों से जान लेवा साबित होता है। हमारे जीवन को,हमारे शरीर को,हमारे परिवार को ,हमारे समाज को किस प्रकार से तवाह करता है यह स्वीट वायरस हम सब अच्छी तरह से जानते व समझते हैं। कोविद-19 के मुकाबले इसकी भयानकता  का अहसास हम साधारणतया समझ सकते हैं फिरभी आश्चर्य है हम इस वायरस के साथ शौक के साथ जीना सीख ही नही गए बल्कि इसको जीवन का हिस्सा बना लेने में जरा भी परहेज़ नही करते।  कारण इस वायरस का स्वाद कडुआ होने के वावजूद इसके संकमण काल के आरंभ बिंदु पर एक अजीब मदहोश कर देने वाली मिठाश का अहसास मानव को खुद जानबूझ कर संक्रमित होने के लिऐ विवस कर देता है। परंतु आरम्भ बिंदु के बाद जो तस्वीरें हमारे समाज में नजर आती है उनकी भयानकता हमें विचलित करने वाली होती हैं।
     दोस्तों इसी अदभुद अहसास से वसीभूत होकर हमारी आत्मा अपने स्वार्थी स्वभाव बस अपने ही शरीर को इस भयानक वायरस से संक्रमित होने के लिए जानबूझ कर मजबूर करती है जबकि आत्मा यह भलीभांति जानती है कि हम जिस शरीर में विद्धमान हैं उसी शरीर को हम नशे के वायरस से तवाह करने जा रहे हैं साथ ही अपने परिवार,अपने समाज को भी ।
     दोस्तों हम आत्मा व अन्तरात्मा के साधरणतया भेदों को अपने और किसी ब्लॉग में बताना चाहेगें उससे पहले नशे के लिए मुख्यरूप से जुम्मेदार स्वार्थ से परिपूर्ण आत्मा तन्त्र के साधारण स्वाभाविक गुणों को समझ लेना अति आवश्यक है।आत्मा सम्बेदन तन्त्र का स्वरूप अति शुक्ष्म होता है परन्तु फिरभी इस तंत्र में स्वार्थ से परिपूर्ण अनंत इच्छाओं का एक विशाल समुन्दर होता है जो हमारे जीवन पर्यंत कभी पूर्ण नही हो पाती हैं।यही स्वार्थी अनन्त इच्छाएं हमारे शरीर में नशे के संक्रमण का कारण बनती हैं।इस तंत्र की स्वार्थ परता को महसूस कर आश्चर्य होता है कि यह तन्त्र भलीभांति जनता है कि हम (आत्मा ) जिस शरीर  में विद्धमान हैं उस शरीर का जीवन जबतक है तभी तक स्वाभाविक रूप से हमारा(आत्मा) का अस्तित्व भी है । उस शरीर की चेतना समाप्त होते ही इस तंत्र का अस्तित्व  भी चेतना के साथ समाप्त हो जाएगा।फ़िर भी यह शूक्ष्म तन्त्र अपने स्वार्थी स्वभाव के अनुरूप तथा वास्तविकता के विपरीत अपने ही शरीर को अनेक नशीले व हानिकारक पदार्थों को सेवन करने के लिए प्रेरित करता रहता है । और उन नशीले पदार्थों में तब तक डुबोये रखना चाहता है कि जबतक उसके अपने शरीर की चेतना का अंत नही हो जाता।
     अब सवाल यह उठता है कि हम इस मानव समाज के दुश्मन महा विनाशक नशे के स्वीट वायरस के संक्रमण से अपने समाज और अपने आप को कैसे बचाव कर सकते हैं ? तथा उससे भी गम्भीर सवाल है कि संक्रमित हो जाने पर हम कैसे स्वस्थ लाभ प्राप्त कर सकते हैं ?
     दोस्तों इसी ब्लॉग में ऊपर हमने बताया है कि स्वार्थ का प्रतिनिधित्व हमारी आत्मा  व संयम का प्रतिनिधित्व हमारी अन्तरात्मा करती है तथा वर्तमान में संयम के बल पर ही हम सावधानी पूर्वक कोरोना जैसी महामारी से मुकाबला कर रहे हैं । अन्तरात्मा द्वारा प्रायोजित  वही संयम ही इस नशे के स्वीट वायरस की वैक्सिन है और संयम ही इस वायरस से छुटकारे की एक मात्र दवा है।बस हमें सकारात्मक रूप से यह स्वीकार करना होगा और अन्तरात्मा को यह विश्वाश दिलाना होगा कि हमने आत्मा की स्वार्थ से परिपूर्ण नशे की अनंत इच्छाओं को त्याग करते हुए संयम के चमत्कारिक मन्त्र का सदैव जाप करूँगा।संयम के चमत्कारिक मन्त्र के  प्रभाव से हमारी स्वार्थ के परित्याग की इच्छा शक्ति प्रबल होगी जिससे हम अन्तरात्मा की आवाज को कभी अनसुना नही कर पाएंगें ।
     दोस्तों मा. प्रधान मंत्री जी के आवाहन पर इस प्रकार हम समाज के लिए बेहद खतरनाक नशे के इस स्वीट वायरस पर संयम द्वारा विजय प्राप्त कर कोरोना काल के आपदा काल को एक अवसर के रूप में बदल सकते हैं।और साथ ही स्वार्थ से परिपूर्ण आत्मा की अनंत इच्छाओं को त्याग अन्तरात्मा के संयम द्वारा नशे व अन्य उल-जलूल चीजों के सेवन को त्याग कर अपने अनमोल शरीर की प्रकृति द्वारा प्रदान की गई अदभुद बीमारी प्रतिरोधक क्षमता को स्ट्रांग लेबल पर कायम रख कोविद-19 के साथ युद्ध में विजय को भी बेहद आसान बना सकते हैं ।
    स्वार्थ के परित्याग की इच्छा शक्ति प्रबल होने से हम आत्मा की स्वार्थी अनंत इच्छाओं को भी त्याग कर मानव जीवन की वास्तविकता को अपना कर अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं।

धन्यवाद


     

Sunday, March 29, 2020

CORONAVIRUS(कोरोना वायरस COVID-19) VS मानव जीवन और वास्तविकता

     आज वर्तमान में हमारा मानव समाज कोरोना वायरस के अचानक हुए हमले से उत्पन्न एक बड़ी महामारी से जूझ रहा है।हम समझपाते इससे पहले ही इस महामारी ने न जाने कितने लोगों को हमसे छीन लिया और हमारे बीच के न जानें कितने लोगों को अपनी गिरफ्त में बराबर लेता जा रहा है।
   हम हड़बड़ाए पर सम्भलने की कोशिश में अपनेआप को असहाय पाकर सावधानीपूर्वक एकमात्र विकल्प वास्तविकता के बिल्कुल करीब जाकर सेल्फडिफेंश के सहारे एकजुट होकर इस महामारी से डटकर मुकाबला कर रहे हैं।महामारी के चुंगल में कैद होकर तड़प-तड़प कर जान देने से बेहतर खुद अपनेआप को कैद कर लेना वास्तविकता का तकाजा समझा।
   हम अगर आत्मा और अंतरात्मा के भेद को समझ सकते हैं तो यहभी भलीभांति समझ सकते हैं कि वास्तविकता का उदगम स्थल हमारी अंतरात्मा ही है।और अंतरात्मा में उत्पन्न सम्बेदना रूपी वास्तविकता के करीब रहकर हम जीवन के प्रत्येक पहलू में ,सदैव विजय प्राप्तकर सकते हैं
   हम आशा ही नही बल्कि बगैर शक के पूरा यकीन करते हैं कि हम वास्तविकता के नजदीक रहकर कोरोना वायरस के इस बड़े हमले को कुछ हद तक नाकाम कर अवश्य विजय प्राप्त कर लेंगे।
   लेकिन दोस्तों सवाल यह उठता है कि क्या हम अन्य महामारियों के हमले की तरह इस महामारी के हमले से भी समय के साथ-साथ बेखबर होकर अन्य  किसी  इसी तरह या इससे बड़े हमले का बैठ कर इंतजार करेगें?
   दोस्तों वह समय मानव जाति पर हुए अचानक महामारी के हमले को भुला देने का नही चिंतन करने का समय होगा।कहीं यह वायरस हमला मानव समाज के लिए खतरे की घंटी तो नही है?कहीं प्रकति हमें संकेत देकर सचेत तो नही कर रही है?कहीं प्रकृति हमें अपने बदलाव का अहसास तो नही करा रही है? स्वाभाविक रुप से कहीं यह कोरोना वायरस प्रकृति के बदलाव का नतीजा तो नहीं है? प्रकृति का हाव-भाव देखकर क्या ऐसा नही प्रतीत होता है कि शायद प्रकृति हमसे कुछ कहना चाहती है?
   हम अहसास तो करते है कि हमारा मानव समाज प्रकृति से दूर होता जा रहा है।लेकिन शायद यह विचार सत्य से परे है।हम जीवन के पहले ,जीवन भर या जीवन के बाद कभी भी प्रकृति से तिल भर एक क्षण के लिए चाह कर भी दूर नही जा सकते। प्रकृति के लिए तो हमसब मात्र मिट्टी का खिलौना हैं।अपने ही अंश की मिट्टी से हमारी काया का निर्माण,फिर उस खिलौने में जान डालकर आनंद की अनुभूति करना और अंत में समय पूर्ण हो जाने पर या इससे पहले ही जैसे-जैसे हम वास्तविकताओं से दूर जाते हैं वैसे-वैसे हमें दुखों व मुसीबतों द्वारा अहसास कराना । विडम्बना है कि हम फिर भी नही समझ पाते हैं।और वास्तविकता से बहुत दूर निकल जाते हैं।मजबूरन मानव रूपी खिलौने को मिट्टी का स्वरूप देकर अपनेआप में विलीन कर लेना प्रकृति का सृष्टिचक्र है।इस प्रकार हम निश्चिन्त रहें, हम प्रकृति से कभी भी दूर नही जा सकते, वास्तव में हम वास्तविकता (REALITY) से दूर जाकर अपने ऊपर स्वंम दुखों या मुसीबतों को दावत देते हैं।
   कोरोना महामारी के रूप में मानव समाज पर आई मुसीबत का कारण भी कहीं हम सबका तमाम वास्तविकताओं से दूर जाना तो नही है?
  उदाहरण के तौरपर साधारणतया हम एक वास्तविकता से स्पस्ट रूप से  रूबरू हो सकते हैं - प्रकृति ने हमें जीवन देने के साथ-साथ भविष्य में अपने जीवन को बीमारियों व वायरस आदि के हमले से बचाव के लिए हमारे शरीर में एक विशेष प्रकार के सुरक्षा कवच की एडवांस में व्यवस्था की है।जिसे बीमारी प्रतिरोधक क्षमता कहते हैं।प्रकति द्वारा प्रदान की गई यही वो अदभुद क्षमता है जो इसप्रकार की अनेक बीमारियों व महामारियों के हमले से हमारे अनमोल शरीर की पूर्णतया सुरक्षा करती है।
   हम अपने ही शरीर की प्रकृति द्वारा प्रदान की गई बीमारी प्रतिरोधक क्षमता के स्वभाव की वास्तविकता को नही समझ पाते हैं और अनैतिक खान-पान व व्यवहार द्वारा वास्तविकता से जाने-अनजाने में दूर होते चले जाते हैं। परिणाम स्वरूप हमारे शरीर की बीमारी प्रतिरोधक क्षमता धीरे-धीरे कम होती चली जाती है । बीमारी या वायरस आदि के हमले के समय हमारे शरीर की यह क्षमता उनका मुकाबला नही कर पाती है और उनसे हार जाती है।परिणाम स्वरूप वायरस आदि हमारे शरीर पर हावी हो जाते हैं और हमारे शरीर के सिस्टम को पूणतया बीमार कर देते हैं।
   इसप्रकार दोस्तों हम समझ सकते हैं कि हम खुदअपने, अपने परिवार,अपने देश,अपने मानव समाज के जीवन की सुरक्षा के प्रति सजग हैं तो हमें वास्तविकता के करीब रहकर अपने अनमोल शरीर की बीमारियों से सुरक्षा के प्रति प्रथम उपचार के तौर पर प्रकृति द्वारा प्रदान की गई बीमारी प्रतिरोधक क्षमता को एक अभेद किले के समान मजबूत बनाना होगा।और अच्छा होगा हम मेडिसिन का सहारा न लेकर प्रकृति के सहारे अपनी इस क्षमता को स्ट्रांग लेबल पर हमेशा बनाये रखें।और इसके साथ-साथ समय-समय पर इसकी जांच या परख करते रहें।साधारणतया हम समझ सकते हैं कि अगर हम जल्दी- जल्दी बीमार हो रहे हैं तो हमारे शरीर की बीमारी रोधक क्षमता का लेबल बहुत डाउन हो गया है।या हमारे शरीर में मामूली घाव हो जाता है या कोई चोट लग जाती है और सफाई रहने के वावजूद वह बगैर दवा के जल्दी ठीक नही होता है तो समझ लेना चाहिए कि हमारे शरीर की बीमारी प्रतिरोधक क्षमता बहुत कम हो गई है।दोस्तों यह हमारा ब्यक्तिगत कर्तव्य होते हुए भी अपने परिवार के प्रति , अपने समाज के प्रति ,अपने देश के प्रति ,अपने मानव जाति के साथ-साथ मानवता के प्रति प्रथम कर्तव्य है।
   दोस्तों इस प्रकार आज वर्तमान जीवन के हर पहलू में हम सब तमाम वास्तविकताओं से दूर जाकर अनेक प्रकार की परेशानियों व दुखों को स्वंम दावत दे रहे हैं।प्रकति हमसे पुकार-पुकार कर कहना चाह रही है,प्रकति का संदेश है - वास्तविकता के पास रहें-वास्तविकता के साथ रहें।तो आओ हमसब मिलकर कदम से कदम मिला कर वास्तविकता की ओर चलें।
  
धन्यबाद-