Thursday, May 28, 2020

मानव जीवन की वास्तविकता-कोरोना (covid-19) कॉल- एक आपदा भी,अवसर भी


     आज हमारा सम्पूर्ण मानव समाज जिस कोरोना वायरस नामक राक्षस से एक बड़ी जंग लड़ रहा है।उस मायावी राक्षस का जन्म चाहे जाने -अनजाने में मानव प्रयोगशाला में हुआ हो या मजबूरन प्रकृति के प्रयोगशाला में हुआ हो इसका जुम्मेदार तो कहीं न कहीं से हमारा मानव समाज ही है।विकास के मद में हमारे मानव समाज की स्वार्थी सम्वेदनाएँ जुम्मेदार हैं जो मानव जीनव की वास्तविकताओं से बहुत दूर होती चली जा रही हैं । जिसका परिणाम आज हमारा सम्पूर्ण मानव समाज भुगत रहा है।
     दोस्तों ' हर प्रकार की सम और विषम परिस्थितियों में भी जो जीव जीवन के मार्ग का नव निर्माण करने का जज्बा रखता हो उसे मानव कहते हैं 'स्वार्थ अगर मानव की सबसे बड़ी कमजोरी है तो संयम उसका सबसे बड़ा हथियार (ब्रम्हास्त्र) है।स्वार्थ का प्रतिनिधित्व हमारी आत्मा करती है और संयम का प्रतिनिधित्व हमारी अन्तरात्मा । संयम और धर्म एक दूसरे के पूरक हैं जहाँ संयम होगा वहीं धर्म, और जहां धर्म होगा वहीं संयम।
     दोस्तों इसी संयम के बल पर ही आज विषम परिस्थितियों में भी हमारा सम्पूर्ण मानव समाज कोविद-19 से डटकर मुकाबला कर रहा है। चाहे सामाजिक दूरी बनाये रखते हुए दिलों की बीच की दूरी को कम करने का संयम हो या संयम के साथ सामाजिक एकता की तस्वीरें जो हमारा समाज पेश कर रहा है  वह अवश्य आश्चर्य चकित करने वाली हैं जिन्हें देख कर हमें अपने मन में अवश्य विश्वास कर लेना hi चाहिए कि हमारा समाज इस युद्ध में विजय के आखिरी पायदान में पहुँच चुका है और शायद बहुत जल्द ही हम अपने ओठों पर विजय की अदभुद मुश्कान के साथ विजय का जश्न मना रहे होगें।
     दोस्तों इस आपदा काल की संयम की घड़ी को अगर हम एक अवसर के नजरिये से देखें तो हम इस विजय को और भी महान बना सकते हैं। तथा न जानें कितने परिवारों के मुरझाये हुए चेहरों पर मुस्कान के साथ सम्पूर्ण मानव समाज में खुशियां विखेर सकते हैं।
     दोस्तों क्या हमें पता है ? कि अनादिकाल से कोरोना वायरस ( कोविद-19 )से भी कई गुना ज्यादा खतरनाक वायरस हमारे मानव समाज के एक बहुत बड़े तबके को बीमार ही नही बनाते जा रहा बल्कि हर पल न जानें कितने रूपों में न जानें कितनी मौतों का कारण भी बन रहा है और न जानें  कितने परिवारों की खुशियां छीनकर नींदें हराम करने वाले इस वायरस की न तो अभी तक कोई वैक्सीन और न ही सेनेटाइजर की खोज हो पाई है तथा न ही सामाजिक दूरी,क्वारंटाइन,आइसोलेशन आदि उपाय कारगर साबित हो रहे हैं।इसका प्रकोप हमारे समाज में लगातार विकराल स्वरूप धारण करता जा रहा है जो हमारे सम्पूर्ण मानव समाज की दीन -हीनता व बड़े दुख का कारण बना हुआ है। 
     दोस्तों इस भयानक वायरस का नाम नशा है । इसी नशे के आरंभ काल के अलौकिक मिठाश के अहसास को ध्यान में रखकर  इस वायरस को हम स्वीट वायरस भी कह सकतें हैं। समाज में इसके संक्रमण के दुष्प्रभावों से हम सब भलीभांति परिचित हैं। समाज का हर तबक़ा, हर मानव,बच्चा-बच्चा तक भलीभांति जनता है कि यह हमारे लिए कितने रूपों से जान लेवा साबित होता है। हमारे जीवन को,हमारे शरीर को,हमारे परिवार को ,हमारे समाज को किस प्रकार से तवाह करता है यह स्वीट वायरस हम सब अच्छी तरह से जानते व समझते हैं। कोविद-19 के मुकाबले इसकी भयानकता  का अहसास हम साधारणतया समझ सकते हैं फिरभी आश्चर्य है हम इस वायरस के साथ शौक के साथ जीना सीख ही नही गए बल्कि इसको जीवन का हिस्सा बना लेने में जरा भी परहेज़ नही करते।  कारण इस वायरस का स्वाद कडुआ होने के वावजूद इसके संकमण काल के आरंभ बिंदु पर एक अजीब मदहोश कर देने वाली मिठाश का अहसास मानव को खुद जानबूझ कर संक्रमित होने के लिऐ विवस कर देता है। परंतु आरम्भ बिंदु के बाद जो तस्वीरें हमारे समाज में नजर आती है उनकी भयानकता हमें विचलित करने वाली होती हैं।
     दोस्तों इसी अदभुद अहसास से वसीभूत होकर हमारी आत्मा अपने स्वार्थी स्वभाव बस अपने ही शरीर को इस भयानक वायरस से संक्रमित होने के लिए जानबूझ कर मजबूर करती है जबकि आत्मा यह भलीभांति जानती है कि हम जिस शरीर में विद्धमान हैं उसी शरीर को हम नशे के वायरस से तवाह करने जा रहे हैं साथ ही अपने परिवार,अपने समाज को भी ।
     दोस्तों हम आत्मा व अन्तरात्मा के साधरणतया भेदों को अपने और किसी ब्लॉग में बताना चाहेगें उससे पहले नशे के लिए मुख्यरूप से जुम्मेदार स्वार्थ से परिपूर्ण आत्मा तन्त्र के साधारण स्वाभाविक गुणों को समझ लेना अति आवश्यक है।आत्मा सम्बेदन तन्त्र का स्वरूप अति शुक्ष्म होता है परन्तु फिरभी इस तंत्र में स्वार्थ से परिपूर्ण अनंत इच्छाओं का एक विशाल समुन्दर होता है जो हमारे जीवन पर्यंत कभी पूर्ण नही हो पाती हैं।यही स्वार्थी अनन्त इच्छाएं हमारे शरीर में नशे के संक्रमण का कारण बनती हैं।इस तंत्र की स्वार्थ परता को महसूस कर आश्चर्य होता है कि यह तन्त्र भलीभांति जनता है कि हम (आत्मा ) जिस शरीर  में विद्धमान हैं उस शरीर का जीवन जबतक है तभी तक स्वाभाविक रूप से हमारा(आत्मा) का अस्तित्व भी है । उस शरीर की चेतना समाप्त होते ही इस तंत्र का अस्तित्व  भी चेतना के साथ समाप्त हो जाएगा।फ़िर भी यह शूक्ष्म तन्त्र अपने स्वार्थी स्वभाव के अनुरूप तथा वास्तविकता के विपरीत अपने ही शरीर को अनेक नशीले व हानिकारक पदार्थों को सेवन करने के लिए प्रेरित करता रहता है । और उन नशीले पदार्थों में तब तक डुबोये रखना चाहता है कि जबतक उसके अपने शरीर की चेतना का अंत नही हो जाता।
     अब सवाल यह उठता है कि हम इस मानव समाज के दुश्मन महा विनाशक नशे के स्वीट वायरस के संक्रमण से अपने समाज और अपने आप को कैसे बचाव कर सकते हैं ? तथा उससे भी गम्भीर सवाल है कि संक्रमित हो जाने पर हम कैसे स्वस्थ लाभ प्राप्त कर सकते हैं ?
     दोस्तों इसी ब्लॉग में ऊपर हमने बताया है कि स्वार्थ का प्रतिनिधित्व हमारी आत्मा  व संयम का प्रतिनिधित्व हमारी अन्तरात्मा करती है तथा वर्तमान में संयम के बल पर ही हम सावधानी पूर्वक कोरोना जैसी महामारी से मुकाबला कर रहे हैं । अन्तरात्मा द्वारा प्रायोजित  वही संयम ही इस नशे के स्वीट वायरस की वैक्सिन है और संयम ही इस वायरस से छुटकारे की एक मात्र दवा है।बस हमें सकारात्मक रूप से यह स्वीकार करना होगा और अन्तरात्मा को यह विश्वाश दिलाना होगा कि हमने आत्मा की स्वार्थ से परिपूर्ण नशे की अनंत इच्छाओं को त्याग करते हुए संयम के चमत्कारिक मन्त्र का सदैव जाप करूँगा।संयम के चमत्कारिक मन्त्र के  प्रभाव से हमारी स्वार्थ के परित्याग की इच्छा शक्ति प्रबल होगी जिससे हम अन्तरात्मा की आवाज को कभी अनसुना नही कर पाएंगें ।
     दोस्तों मा. प्रधान मंत्री जी के आवाहन पर इस प्रकार हम समाज के लिए बेहद खतरनाक नशे के इस स्वीट वायरस पर संयम द्वारा विजय प्राप्त कर कोरोना काल के आपदा काल को एक अवसर के रूप में बदल सकते हैं।और साथ ही स्वार्थ से परिपूर्ण आत्मा की अनंत इच्छाओं को त्याग अन्तरात्मा के संयम द्वारा नशे व अन्य उल-जलूल चीजों के सेवन को त्याग कर अपने अनमोल शरीर की प्रकृति द्वारा प्रदान की गई अदभुद बीमारी प्रतिरोधक क्षमता को स्ट्रांग लेबल पर कायम रख कोविद-19 के साथ युद्ध में विजय को भी बेहद आसान बना सकते हैं ।
    स्वार्थ के परित्याग की इच्छा शक्ति प्रबल होने से हम आत्मा की स्वार्थी अनंत इच्छाओं को भी त्याग कर मानव जीवन की वास्तविकता को अपना कर अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं।

धन्यवाद


     

Sunday, March 29, 2020

CORONAVIRUS(कोरोना वायरस COVID-19) VS मानव जीवन और वास्तविकता

     आज वर्तमान में हमारा मानव समाज कोरोना वायरस के अचानक हुए हमले से उत्पन्न एक बड़ी महामारी से जूझ रहा है।हम समझपाते इससे पहले ही इस महामारी ने न जाने कितने लोगों को हमसे छीन लिया और हमारे बीच के न जानें कितने लोगों को अपनी गिरफ्त में बराबर लेता जा रहा है।
   हम हड़बड़ाए पर सम्भलने की कोशिश में अपनेआप को असहाय पाकर सावधानीपूर्वक एकमात्र विकल्प वास्तविकता के बिल्कुल करीब जाकर सेल्फडिफेंश के सहारे एकजुट होकर इस महामारी से डटकर मुकाबला कर रहे हैं।महामारी के चुंगल में कैद होकर तड़प-तड़प कर जान देने से बेहतर खुद अपनेआप को कैद कर लेना वास्तविकता का तकाजा समझा।
   हम अगर आत्मा और अंतरात्मा के भेद को समझ सकते हैं तो यहभी भलीभांति समझ सकते हैं कि वास्तविकता का उदगम स्थल हमारी अंतरात्मा ही है।और अंतरात्मा में उत्पन्न सम्बेदना रूपी वास्तविकता के करीब रहकर हम जीवन के प्रत्येक पहलू में ,सदैव विजय प्राप्तकर सकते हैं
   हम आशा ही नही बल्कि बगैर शक के पूरा यकीन करते हैं कि हम वास्तविकता के नजदीक रहकर कोरोना वायरस के इस बड़े हमले को कुछ हद तक नाकाम कर अवश्य विजय प्राप्त कर लेंगे।
   लेकिन दोस्तों सवाल यह उठता है कि क्या हम अन्य महामारियों के हमले की तरह इस महामारी के हमले से भी समय के साथ-साथ बेखबर होकर अन्य  किसी  इसी तरह या इससे बड़े हमले का बैठ कर इंतजार करेगें?
   दोस्तों वह समय मानव जाति पर हुए अचानक महामारी के हमले को भुला देने का नही चिंतन करने का समय होगा।कहीं यह वायरस हमला मानव समाज के लिए खतरे की घंटी तो नही है?कहीं प्रकति हमें संकेत देकर सचेत तो नही कर रही है?कहीं प्रकृति हमें अपने बदलाव का अहसास तो नही करा रही है? स्वाभाविक रुप से कहीं यह कोरोना वायरस प्रकृति के बदलाव का नतीजा तो नहीं है? प्रकृति का हाव-भाव देखकर क्या ऐसा नही प्रतीत होता है कि शायद प्रकृति हमसे कुछ कहना चाहती है?
   हम अहसास तो करते है कि हमारा मानव समाज प्रकृति से दूर होता जा रहा है।लेकिन शायद यह विचार सत्य से परे है।हम जीवन के पहले ,जीवन भर या जीवन के बाद कभी भी प्रकृति से तिल भर एक क्षण के लिए चाह कर भी दूर नही जा सकते। प्रकृति के लिए तो हमसब मात्र मिट्टी का खिलौना हैं।अपने ही अंश की मिट्टी से हमारी काया का निर्माण,फिर उस खिलौने में जान डालकर आनंद की अनुभूति करना और अंत में समय पूर्ण हो जाने पर या इससे पहले ही जैसे-जैसे हम वास्तविकताओं से दूर जाते हैं वैसे-वैसे हमें दुखों व मुसीबतों द्वारा अहसास कराना । विडम्बना है कि हम फिर भी नही समझ पाते हैं।और वास्तविकता से बहुत दूर निकल जाते हैं।मजबूरन मानव रूपी खिलौने को मिट्टी का स्वरूप देकर अपनेआप में विलीन कर लेना प्रकृति का सृष्टिचक्र है।इस प्रकार हम निश्चिन्त रहें, हम प्रकृति से कभी भी दूर नही जा सकते, वास्तव में हम वास्तविकता (REALITY) से दूर जाकर अपने ऊपर स्वंम दुखों या मुसीबतों को दावत देते हैं।
   कोरोना महामारी के रूप में मानव समाज पर आई मुसीबत का कारण भी कहीं हम सबका तमाम वास्तविकताओं से दूर जाना तो नही है?
  उदाहरण के तौरपर साधारणतया हम एक वास्तविकता से स्पस्ट रूप से  रूबरू हो सकते हैं - प्रकृति ने हमें जीवन देने के साथ-साथ भविष्य में अपने जीवन को बीमारियों व वायरस आदि के हमले से बचाव के लिए हमारे शरीर में एक विशेष प्रकार के सुरक्षा कवच की एडवांस में व्यवस्था की है।जिसे बीमारी प्रतिरोधक क्षमता कहते हैं।प्रकति द्वारा प्रदान की गई यही वो अदभुद क्षमता है जो इसप्रकार की अनेक बीमारियों व महामारियों के हमले से हमारे अनमोल शरीर की पूर्णतया सुरक्षा करती है।
   हम अपने ही शरीर की प्रकृति द्वारा प्रदान की गई बीमारी प्रतिरोधक क्षमता के स्वभाव की वास्तविकता को नही समझ पाते हैं और अनैतिक खान-पान व व्यवहार द्वारा वास्तविकता से जाने-अनजाने में दूर होते चले जाते हैं। परिणाम स्वरूप हमारे शरीर की बीमारी प्रतिरोधक क्षमता धीरे-धीरे कम होती चली जाती है । बीमारी या वायरस आदि के हमले के समय हमारे शरीर की यह क्षमता उनका मुकाबला नही कर पाती है और उनसे हार जाती है।परिणाम स्वरूप वायरस आदि हमारे शरीर पर हावी हो जाते हैं और हमारे शरीर के सिस्टम को पूणतया बीमार कर देते हैं।
   इसप्रकार दोस्तों हम समझ सकते हैं कि हम खुदअपने, अपने परिवार,अपने देश,अपने मानव समाज के जीवन की सुरक्षा के प्रति सजग हैं तो हमें वास्तविकता के करीब रहकर अपने अनमोल शरीर की बीमारियों से सुरक्षा के प्रति प्रथम उपचार के तौर पर प्रकृति द्वारा प्रदान की गई बीमारी प्रतिरोधक क्षमता को एक अभेद किले के समान मजबूत बनाना होगा।और अच्छा होगा हम मेडिसिन का सहारा न लेकर प्रकृति के सहारे अपनी इस क्षमता को स्ट्रांग लेबल पर हमेशा बनाये रखें।और इसके साथ-साथ समय-समय पर इसकी जांच या परख करते रहें।साधारणतया हम समझ सकते हैं कि अगर हम जल्दी- जल्दी बीमार हो रहे हैं तो हमारे शरीर की बीमारी रोधक क्षमता का लेबल बहुत डाउन हो गया है।या हमारे शरीर में मामूली घाव हो जाता है या कोई चोट लग जाती है और सफाई रहने के वावजूद वह बगैर दवा के जल्दी ठीक नही होता है तो समझ लेना चाहिए कि हमारे शरीर की बीमारी प्रतिरोधक क्षमता बहुत कम हो गई है।दोस्तों यह हमारा ब्यक्तिगत कर्तव्य होते हुए भी अपने परिवार के प्रति , अपने समाज के प्रति ,अपने देश के प्रति ,अपने मानव जाति के साथ-साथ मानवता के प्रति प्रथम कर्तव्य है।
   दोस्तों इस प्रकार आज वर्तमान जीवन के हर पहलू में हम सब तमाम वास्तविकताओं से दूर जाकर अनेक प्रकार की परेशानियों व दुखों को स्वंम दावत दे रहे हैं।प्रकति हमसे पुकार-पुकार कर कहना चाह रही है,प्रकति का संदेश है - वास्तविकता के पास रहें-वास्तविकता के साथ रहें।तो आओ हमसब मिलकर कदम से कदम मिला कर वास्तविकता की ओर चलें।
  
धन्यबाद-

Monday, June 10, 2019

मानव जीवन की वास्तविकता और हमारी दोस्ती /

हमारे मानव जीवन की  वास्तविकता  है  की हम एक सामाजिक प्राणी  है /  समाज परिवारों  का  एक समूह होता  है / हमारे  पारिवारिक रिस्तों  के  बाद अगर किसी  रिस्ते  का  स्थान आता  है  तो  वह है  दोस्ती  का  रिस्ता /
वैसे  तो  मानव जीवन की  वास्तविकता  हमें  प्रत्येक इंसान, प्रत्येक जीव व हर वस्तु  से  दोस्ती  का  पाठ पढ़ाती  है  परंतु  कुछ इंसान या  जीव भावनाओं  और विचारों  के  सहारे  हमारे  दिल में  उतर जाते  है  और दोस्ती  के  पवित्र  रिस्ते  में  बंध कर हमारे  सच्चे  दोस्त  बनजाते  है /
सच्चे  दोस्त, सार्थक मानव जीवन की  राह के  वास्तविक पथप्रदर्शक की  श्रेणी  मे  आते  है, जो  समय समय पर हमारे   जीवन की  वास्तविकता  से  हमें  अवगत कराते  रहते  है / सच्चे  दोस्तों  के  प्रभाव से  हमारे  जीवन में  सकारात्मक ऊर्जा  के  प्रवाह द्वारा  हमारे  शरीर मे  मानसिक बल,शारीरिक बल,अद्यत्मिक बल अर्थात हमारे  सम्पूर्ण  आत्मबल का  विकाश होता  है /
किसी  इन्सान की  गरीबी  हमारे  भगवान की  देन नहीं,  हमारे  अपने  समाज द्वारा  उस इन्सान को  दिया  गया  एक बदसूरत तोहफा  होता  है / मानव जीवन की  वास्तविकता  के  आधार पर वो  इन्सान बहुत खुश किस्मत होता  है,  जिसके  दोस्तों  की  लिस्ट  में  गरीब दोस्त  ही  होते  हैं  या  गरीब दोस्तों  की  संख्या  अधिक होती  है / गरीब दोस्तों  की  निकटता  या  दोस्ती  हमें  विवश कर देती  है  उनके  जीवन को  भलीभाँति  समझने  के  लिए, किस प्रकार विपरीत  परिस्थितियों  में  भी  एक  गरीब  दोस्त  या  इन्सान अपने  परिवार  के  साथसाथ अपने  दोस्तों  अपने  समाज और  अपने  आप  को  भी  खुश रखते  हुये  नैतिकता  के  साथ  संतुस्ट  जीवन जीता  है /
अत: इस प्रकार महसूस करते  ही  हमारे  जीवन  में  स्वत:  सकारात्मक  ऊर्जा  के  प्रवेश  करने  से  हमारा  सम्पूर्ण  आत्मबल या  आत्मविश्वास  स्वाभाविक  रूप  से  चरम  पर  पहुँच जाता  है,  और  हम  जीवन के  प्रत्येक  पहलू  में  उस  चमत्कारिक आत्मबल के  द्वारा  सार्थक  सफलता  प्राप्त  करते  हुये  नैतिक, सार्थक व  संतुस्ट  जीवन  जी  सकते  है, और साथही  हमारे  समाज ने  जो  उन्हें  गरीबी रूपी  कुरूप  तोहफा  दिया  है  उसका  प्रायश्चित  कर  अपने  जीवन  से  पूर्ण  संतुष्ठी  प्राप्त  कर  सकते  है /
इसप्रकार  दोस्तों  हम समझ सकते  हैं, और  हमारा  इतिहास भी  गवाह  है  कि  गरीब  दोस्त  और  उनकी  दोस्ती  हमारे  मानव  जीवन  की  वास्तविकता  के  कितने  करीब होती  है /

धन्यवाद

Wednesday, September 26, 2018

भंडारा की वास्तविकता क्या है ?

     दोस्तों भंडारा प्राचीन काल से चली आ रही एक सामाजिक परम्परा या सामाजिक सुरीति है।जो विशेष कर मानव समाज सेवा से सम्बन्ध रखती है।इस नेक प्रथा का सुभारम्भ हमारे मानव समाज में नेक प्रेरणा श्रोतों के द्वारा हुआ जिसमें हमारे अपने भगवान के प्रति श्रदया भावना से प्रेरित प्रेरणा का मुख्य स्थान था ।
     हमारे प्राचीन अविकसित समाज में गरीबी एक मुख्य समस्या थी।और गरीबी का वो आलम था कि हमारे समाज के एक बड़े तबके को 'दो जून की रोटी' मोहताज नही थी । तथा समाज में एक तबका ऐसा भी था जिसे अक्सर 'एक जून का खाना' भी नसीब नही हो पाता था,उसे खाली पेट ही सो जाना पड़ता था। हमारे मानव समाज में भूख एक बड़ी पीड़ा थी जो मनुष्य को असमय मृत्यु की ओर खींच ले जाती थी ।
     हमारे प्राचीन समाज के एक छोटे से सामर्थवान तबके में एक तबका ऐसा भी था जो भूख से कराह रहे समाज के दर्द से अनभिज्ञ नही था । अंतरात्मा की नेक प्रेरणा और अपने भगवान के प्रति श्रदया भाव से प्रेरित हो कर वही मृदु हिर्दयी तबका विशेष अवसरों पर भूख से ब्याकुल समाज के भोजनार्थ भंडारे का प्रयोजन आरम्भ किया । उस विशेष अवसर पर गरीब वर्ग को भोजन से तृप्ति द्वारा प्राप्त खुसी व अपने प्रति कृतज्ञता के भाव को महसूस कर सामर्थवान दयालु तबके को विशेष सकून व परम् आनन्द का अनुभव प्राप्त होता था । समय की उपयोगिता के आधार पर यही प्रयोजन धीरे-धीरे हमारे मानव समाज में सु रीति का रूप धारण कर लिया ।
     दोस्तों अब प्रश्न यह उठता है कि क्या आज भी भंडारे की उपयोगिता या महत्व उतना ही है जितना कि प्राचीन काल में था ? क्या आज भी हमारे मानव समाज में 'दो जून की रोटी' नसीब होना एक मुख्य समस्या है ? क्या आज भी हमारे समाज में 'भूख एक बड़ा दर्द' है ? क्या आज भी भंडारे में शामिल लोग वो गरीब होते है जो भूख की पीड़ा को महशूश करते हैं ?
    दोस्तों हमारा मानव समाज आज के समय में विकाश के कई पायदान पार कर चुका है ।आज का हमारा समाज 'दो जून की रोटी' का मोहताज नही है । पर हां आज भी हमारे समाज का एक बड़ा तबका गरीब है । आज भी गरीबी है हमारे मानव समाज में पर मुख्य समस्या रोटी नही है। मुख्य समस्या है गरीब परिवारों का पालन पोषण । आज भी हमारे समाज में पीड़ा है लेकिन वो भूख की पीड़ा नही 'बीमारी की पीड़ा 'है जो गरीबी के कारण इलाज न मिल पाने से गरीबों को असमय मृत्यू की ओर खींच ले जाती है । आज भी हमारे समाज में दर्द है लेकिन वो 'भूखे पेट का दर्द 'नही बल्कि गरीबी के कारण समय पर 'बिटिया के हाथ पीले 'न कर पाने का दर्द है । आदि न जानें कितनी समस्याओं के "दर्द "से हमारा गरीब तबके का समाज आज भी कराह रहा है ।और हम है कि प्राचीन समाज के भंडारे की सु रीति को आज भी उसी स्वरूप को ही ढोये जा रहे है जो स्वरूप शायद समय के साथ अपनी उपयोगिता खो चुका है
     दोस्तों भंडारे की वास्तविकता को समझनें के उपरांत समय के आधार पर इसकी उपयोगिता व महत्व को ध्यान में रख कर समाज में इस सु रीति के स्वरूप को बदलनें की आवश्यक्ता महसूस हो रही है । जिससे गरीब तबके को राहत व प्रायोजक तबके को वास्तविक सकून व परम् आनन्द प्राप्त हो सके तथा हमारी अपने भगवान के प्रति श्रदया भावना का विकास हो।

     धन्यवाद
     

Friday, September 14, 2018

हमारा बचपन और जीवन की वास्तविक्ता का सम्बन्ध,जानें

     दोस्तों हम सब आज भी बचपन को याद कर कितना रोमांचित हो उठते हैं।उन दिनों की याद आते ही हम अपने बचपन में खो जाते हैं।कितने खुशनुमा दिन थे वो,न कोई फिकर,न कोई चिंता,न कोई टेंशन,न कोई डर,न कोई भय आदि ऐसा कुछ भी तो बचपन में नहीं था। अहसास तो तब भी था, पर वो खुशिओं का अहसास था सुख का अहसास था- मां की गोद में लोरी सुनते हुए सो जानें का अहसास,बाप की उंगलियों को पकड़ कर चलना सीखने का अहसास,मां बाप की प्यार भरी डांट का अहसास, भाई,बहन, दोस्तों के साथ खेलनें का अहसास आदि इतना ही नही, जुगनू,तितलियों के पीछे दौड़नें की खुशी,बरसात में कागज की नाव बना कर पानी में तैराने की खुशी,चॉकलेट की खुशी , खिलौनों की खुशी,मेला जाने की खुशी,त्योहारों,ब्याह शादी आदि में नए कपड़े पहनने,मिठाइयां खाने व धूम मचाने की खुशी।हमारी मीठी नींद भी खुशिओं के सपनों से भरी होती थी। बचपन को दुख का अहसास ही नही था।
     दोस्तों जैसे-जैसे हमारा बचपन बीतता जाता है वैसे-वैसे हमारे बचपन की खुशियां हमसे दूर होती चली जाती हैं।और जुम्मेदारियों के साथ-साथ हमारे जीवन में चिंता,फ़िक्र और टेंसन बहुत सारी मुशीबतों का बढ़ना आरम्भ हो जाता है।हम शांति व सकून का अहसास ठीक से समझ भी नही पाते हैं और यह हमसे हमारे जीवन से दूर जाने के लिए मचलनें लगता है।
     उम्र के साथ जुम्मेदारियों का बढ़ना तो हमारे जीवन की वास्तविकता है, पर दोस्तों उम्र और जुम्मेदारियों के साथ चिंता,फिक्र,अशांति आदि का बढ़ना अगर हम अपने जीवन की वास्तविक्ता मान लेंगें तो यह हमारी नकारात्मक सोंच होगी।जरा सोचिए कि- क्या हम जुम्मेदारियों से मुहँ मोड़कर जीवन में कभी शांति व सकून प्राप्त कर सकते हैं? मानव जीवन की जुम्मेदारियां,उसके 'सार्थक जीवन' के पथ पर हमेशा मददगार साबित होती हैं।
     सच तो यह है दोस्तों कि हमारा मानव जीवन एक वास्तविक्ता है।हमारे जन्म के साथ हमारी वास्तविकताएं भी जन्म लेतीं हैं और हम उन्हीं वास्तविकताओं के साथ जीना आरम्भ करते हैं।हमारा बचपन वास्तविकताओं के बिल्कुल करीब होता है।परिणाम स्वरूप बचपन में चिंता,फिक्र,टेंसन, अशांति आदि का कोई स्थान नही होता है। यहाँ तक कि दुख आदि के अहसास तक को हमारा बचपन महसूस नही कर पाता है। इसी लिए बचपन को हम सब जीवन का सबसे खुशनुमा पन मानते हैं।
     जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती है बचपन का स्थान हमारी जुम्मेदारियाँ लेने लग जाती है।और धीरे-धीरे हमारा बचपन हमसे दूर होने लगता है तथा जुम्मेदारियाँ बढ़नें लगतीं हैं। जुम्मेदारियाँ निभाते-निभाते हम अनजाने में धीरे-धीरे नकारात्मक विचारों से ग्रसित होते जाते हैं जिससे हमारे जीवन की वास्तविकता हमसे दूर होने लगती है और वास्तविक्ता के साथ ही हमारी तमाम खुशियां आदि हमसे दूर चली जाती हैं।
     इस प्रकार दोस्तों हमें अगर बचपन जैसी शांति,सकून, खुशियों आदि का अहसास जीवन भर करना है तो हमें बचपन की तरह सम्पूर्ण जीवन वास्तविक्ता के करीब रहना होगा

धन्यवाद-

Monday, September 10, 2018

जीवन के रंग , वास्तविक्ता के संग (life colors , with Realism)

     दोस्तों हमारा जीवन एक रंगी नही है,सतरंगी भी नही है,हमारा मानव जीवन बहुरंगी है।अनेकों रंग है हमारे श्रेस्ट मानव जीवन के।प्रकृति में जितनें भी रंग हैं सब के सब हमारे जीवन में समाये हुए हैं।हमारे मानव जीवन के अनेकों पहलू हैं और हर पहलू का एक अलग रंग है।और उस रंग में अपार आनन्द समाया हुआ है।
     परन्तु दोस्तों,चिंता की बात तो यह है कि आज हमारा मानव समाज और हम अपने रंगविरंगे जीवन से प्राप्त होने वाले'वास्तविक आनन्द' के अहसास तक को भूलते जा रहे हैं।स्वाभाविक है कि हमारे जीवन के रंग भी फीके पड़ते चले जा रहे हैं।और रंगों के साथ हमारा मानव जीवन भी फीका होते चला जा रहा है।
     दोस्तों, हम अगर अपने जीवन में वास्तविक रंग भरना चाहते हैं तो हमें 'वास्तविक्ता' के संग आना होगा।'वास्तविक्ता' के पास आना होगा। 'वास्तविक्ता' के साथ जीवन के हर पहलू को जीना होगा।
     उदाहरण के तौर पर,हम अपने पारिवारिक व सामाजिक रिश्तों की वास्तविकता से जितना ही दूर होते चले जा रहे हैं हमारे 'जीवन के पारिवारिक व सामाजिक पहलू ' के रंग उतने ही फीके पड़ते चले जा रहे हैं।और हम उन रिश्तों के अहसास तक को भी धीरे-धीरे भूलते चले जा रहे हैं।हम रिश्तों की 'वास्तविकता' को नही महसूस कर रहे हैं तो स्वाभाविक है कि हम रिश्तों से प्राप्त वास्तविक आनन्द को कैसे अहसास कर पायेगें ।
     इसी प्रकार,हम अगर अपने 'जीवन में शिक्षा के महत्व' की वास्तविक्ता से दूर जाकर शिक्षा ग्रहण करते हैं या वास्तविक शिक्षा नही ग्रहण करते हैं तो हमारा जीवन वास्तविक शिक्षा के अभाव में बदरंग हो जाएगा और हम अपने जीवन के उस रंग से प्राप्त होने वाले वास्तविक आनन्द का अनुभव नही कर पायेगें ।
     इस प्रकार दोस्तों,हमें अगर 'अपने व अपने समाज के जीवन' को रंगों से सराबोर रखते हुए जीवन के वास्तविक आनन्द का अनुभव करना है तो हमें इस वास्तविक्ता को अपनाना ही होगा कि- जीवन के रंग , वास्तविक्ता के संग

      धन्यबाद-

Saturday, September 8, 2018

मानव जीवन की वास्तविकता और हमारा सामाजिक विकास (Reality of human life and our social development)

 
   दोस्तों आज वैज्ञानिक युग में नित्य नये आविष्कार हो रहे हैं।हम मंगल ग्रह पर कदम रखने जा रहे हैं।हमारा अंतरिक्ष में आशियाना बनाने का सपना हकीकत में बदलने जा रहा है।हमारा विज्ञान असम्भव को भी सम्भव बनाते हुये नित्य नये पायदान पार कर विकास के उच्चतम शिखर की ओर चढ़ते चला जा रहा है।हम सब खुश हैं कि हमारा विज्ञान हमारे जीवन को काफी हद तक आसान व समृद्ध बनाते जा रहा है।
     परंतु हम अगर मानव समाज के समग्र विकास की ओर चिंतन करते हैं तो हमारे सामने बहुत सारे प्रश्न आकर खड़े हो जाते हैं।दोस्तों हमारे समाज के विकास का मुख्य उद्देश्य सुख,समृद्धि,शान्ति व शकून प्राप्त करना होता है।हमारे समाज के वैज्ञानिक पहलू का विकास तो विकास के निरंतर प्रक्रिया के सिद्धान्त के तहत बराबर होता चला जा रहा है।और हम नित्य वैज्ञानिक विकास की सीढ़ियाँ चढ़ते चले जा रहे हैं।परंतु हमारे मानव समाज के मुख्य या दूसरे पहलू नैतिक पहलू का पतन उसी प्रकार निरन्तर होता चला जा रहा है।हम मानव समाज के नैतिक मूल्यों के पतन का इतिहास आज से पीछे मुड़ कर बराबर देख सकते हैं।जबकि हमारे समाज में नैतिक मूल्यों का विकास भी विकास के निरन्तर प्रक्रिया के सिद्धान्त के तहत बराबर होना चाहिये था।
     दोस्तों हमें वैज्ञानिक अविष्कारों को सामने देख कर,प्रयोग कर,समझ कर व महसूस कर बहुत खुशी होती है।हमें खुशी होती है कि हमारे वैज्ञानिक अविष्कारों नें हमारी सात समंदर की दूरी को कितना कम कर दिया है।पर क्या आज हम अपने सामाजिक व पारिवारिक रिश्तों की दूरियों को अहसास कर दुखी नही होते ? हम बहुत खुश होते हैं कि आज हम अपने समाज से कुछ एक बुराइयों,कुरीतियों को कम या समाप्त कर दिया है।परन्तु क्या हम यह देखकर दुखी नही होते कि आज हमारे मानव समाज में कितने प्रकार की कुरीतियाँ व बुराइयाँ नित्य जन्म लेतीं चली जा रही हैं ? 
     इस प्रकार दोस्तों हमारे समाज का पहला वैज्ञानिक पहलू की गाड़ी तो विकास के पथ पर आंगें बढ़ती जा रही है।परंतु दूसरे नैतिक पहलू की गाड़ी इसके विपरीत दिशा नैतिक मूल्यों के पतन की ओर जा रही है।
     इस प्रकार हमारा मानव समाज समृद्द तो होता जा रहा परन्तु नैतिक मूल्यों के अभाव में वास्तविक सुख,शांति व सकून से दूर होता जा रहा है।दोस्तों हमें वास्तविकता को समझकर मानव समाज के समग्र विकास के वैज्ञानिक व नैतिक दोनों पहलुओं की रेलगाड़ी को एक साथ विकास के पथ पर आंगें ले जाने की कोशिश करना चाहिये तभी हम सामाजिक विकास के मुख्य उद्देश्य सुख,समृद्दि, शांति व सकून को प्राप्त कर सकते हैं।
     धन्यवाद