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Friday, September 14, 2018

हमारा बचपन और जीवन की वास्तविक्ता का सम्बन्ध,जानें

     दोस्तों हम सब आज भी बचपन को याद कर कितना रोमांचित हो उठते हैं।उन दिनों की याद आते ही हम अपने बचपन में खो जाते हैं।कितने खुशनुमा दिन थे वो,न कोई फिकर,न कोई चिंता,न कोई टेंशन,न कोई डर,न कोई भय आदि ऐसा कुछ भी तो बचपन में नहीं था। अहसास तो तब भी था, पर वो खुशिओं का अहसास था सुख का अहसास था- मां की गोद में लोरी सुनते हुए सो जानें का अहसास,बाप की उंगलियों को पकड़ कर चलना सीखने का अहसास,मां बाप की प्यार भरी डांट का अहसास, भाई,बहन, दोस्तों के साथ खेलनें का अहसास आदि इतना ही नही, जुगनू,तितलियों के पीछे दौड़नें की खुशी,बरसात में कागज की नाव बना कर पानी में तैराने की खुशी,चॉकलेट की खुशी , खिलौनों की खुशी,मेला जाने की खुशी,त्योहारों,ब्याह शादी आदि में नए कपड़े पहनने,मिठाइयां खाने व धूम मचाने की खुशी।हमारी मीठी नींद भी खुशिओं के सपनों से भरी होती थी। बचपन को दुख का अहसास ही नही था।
     दोस्तों जैसे-जैसे हमारा बचपन बीतता जाता है वैसे-वैसे हमारे बचपन की खुशियां हमसे दूर होती चली जाती हैं।और जुम्मेदारियों के साथ-साथ हमारे जीवन में चिंता,फ़िक्र और टेंसन बहुत सारी मुशीबतों का बढ़ना आरम्भ हो जाता है।हम शांति व सकून का अहसास ठीक से समझ भी नही पाते हैं और यह हमसे हमारे जीवन से दूर जाने के लिए मचलनें लगता है।
     उम्र के साथ जुम्मेदारियों का बढ़ना तो हमारे जीवन की वास्तविकता है, पर दोस्तों उम्र और जुम्मेदारियों के साथ चिंता,फिक्र,अशांति आदि का बढ़ना अगर हम अपने जीवन की वास्तविक्ता मान लेंगें तो यह हमारी नकारात्मक सोंच होगी।जरा सोचिए कि- क्या हम जुम्मेदारियों से मुहँ मोड़कर जीवन में कभी शांति व सकून प्राप्त कर सकते हैं? मानव जीवन की जुम्मेदारियां,उसके 'सार्थक जीवन' के पथ पर हमेशा मददगार साबित होती हैं।
     सच तो यह है दोस्तों कि हमारा मानव जीवन एक वास्तविक्ता है।हमारे जन्म के साथ हमारी वास्तविकताएं भी जन्म लेतीं हैं और हम उन्हीं वास्तविकताओं के साथ जीना आरम्भ करते हैं।हमारा बचपन वास्तविकताओं के बिल्कुल करीब होता है।परिणाम स्वरूप बचपन में चिंता,फिक्र,टेंसन, अशांति आदि का कोई स्थान नही होता है। यहाँ तक कि दुख आदि के अहसास तक को हमारा बचपन महसूस नही कर पाता है। इसी लिए बचपन को हम सब जीवन का सबसे खुशनुमा पन मानते हैं।
     जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती है बचपन का स्थान हमारी जुम्मेदारियाँ लेने लग जाती है।और धीरे-धीरे हमारा बचपन हमसे दूर होने लगता है तथा जुम्मेदारियाँ बढ़नें लगतीं हैं। जुम्मेदारियाँ निभाते-निभाते हम अनजाने में धीरे-धीरे नकारात्मक विचारों से ग्रसित होते जाते हैं जिससे हमारे जीवन की वास्तविकता हमसे दूर होने लगती है और वास्तविक्ता के साथ ही हमारी तमाम खुशियां आदि हमसे दूर चली जाती हैं।
     इस प्रकार दोस्तों हमें अगर बचपन जैसी शांति,सकून, खुशियों आदि का अहसास जीवन भर करना है तो हमें बचपन की तरह सम्पूर्ण जीवन वास्तविक्ता के करीब रहना होगा

धन्यवाद-

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