दोस्तों हमारा जीवन एक रंगी नही है,सतरंगी भी नही है,हमारा मानव जीवन बहुरंगी है।अनेकों रंग है हमारे श्रेस्ट मानव जीवन के।प्रकृति में जितनें भी रंग हैं सब के सब हमारे जीवन में समाये हुए हैं।हमारे मानव जीवन के अनेकों पहलू हैं और हर पहलू का एक अलग रंग है।और उस रंग में अपार आनन्द समाया हुआ है।
परन्तु दोस्तों,चिंता की बात तो यह है कि आज हमारा मानव समाज और हम अपने रंगविरंगे जीवन से प्राप्त होने वाले'वास्तविक आनन्द' के अहसास तक को भूलते जा रहे हैं।स्वाभाविक है कि हमारे जीवन के रंग भी फीके पड़ते चले जा रहे हैं।और रंगों के साथ हमारा मानव जीवन भी फीका होते चला जा रहा है।
दोस्तों, हम अगर अपने जीवन में वास्तविक रंग भरना चाहते हैं तो हमें 'वास्तविक्ता' के संग आना होगा।'वास्तविक्ता' के पास आना होगा। 'वास्तविक्ता' के साथ जीवन के हर पहलू को जीना होगा।
उदाहरण के तौर पर,हम अपने पारिवारिक व सामाजिक रिश्तों की वास्तविकता से जितना ही दूर होते चले जा रहे हैं हमारे 'जीवन के पारिवारिक व सामाजिक पहलू ' के रंग उतने ही फीके पड़ते चले जा रहे हैं।और हम उन रिश्तों के अहसास तक को भी धीरे-धीरे भूलते चले जा रहे हैं।हम रिश्तों की 'वास्तविकता' को नही महसूस कर रहे हैं तो स्वाभाविक है कि हम रिश्तों से प्राप्त वास्तविक आनन्द को कैसे अहसास कर पायेगें ।
इसी प्रकार,हम अगर अपने 'जीवन में शिक्षा के महत्व' की वास्तविक्ता से दूर जाकर शिक्षा ग्रहण करते हैं या वास्तविक शिक्षा नही ग्रहण करते हैं तो हमारा जीवन वास्तविक शिक्षा के अभाव में बदरंग हो जाएगा। और हम अपने जीवन के उस रंग से प्राप्त होने वाले वास्तविक आनन्द का अनुभव नही कर पायेगें ।
इस प्रकार दोस्तों,हमें अगर 'अपने व अपने समाज के जीवन' को रंगों से सराबोर रखते हुए जीवन के वास्तविक आनन्द का अनुभव करना है तो हमें इस वास्तविक्ता को अपनाना ही होगा कि- जीवन के रंग , वास्तविक्ता के संग ।
धन्यबाद-
परन्तु दोस्तों,चिंता की बात तो यह है कि आज हमारा मानव समाज और हम अपने रंगविरंगे जीवन से प्राप्त होने वाले'वास्तविक आनन्द' के अहसास तक को भूलते जा रहे हैं।स्वाभाविक है कि हमारे जीवन के रंग भी फीके पड़ते चले जा रहे हैं।और रंगों के साथ हमारा मानव जीवन भी फीका होते चला जा रहा है।
दोस्तों, हम अगर अपने जीवन में वास्तविक रंग भरना चाहते हैं तो हमें 'वास्तविक्ता' के संग आना होगा।'वास्तविक्ता' के पास आना होगा। 'वास्तविक्ता' के साथ जीवन के हर पहलू को जीना होगा।
उदाहरण के तौर पर,हम अपने पारिवारिक व सामाजिक रिश्तों की वास्तविकता से जितना ही दूर होते चले जा रहे हैं हमारे 'जीवन के पारिवारिक व सामाजिक पहलू ' के रंग उतने ही फीके पड़ते चले जा रहे हैं।और हम उन रिश्तों के अहसास तक को भी धीरे-धीरे भूलते चले जा रहे हैं।हम रिश्तों की 'वास्तविकता' को नही महसूस कर रहे हैं तो स्वाभाविक है कि हम रिश्तों से प्राप्त वास्तविक आनन्द को कैसे अहसास कर पायेगें ।
इसी प्रकार,हम अगर अपने 'जीवन में शिक्षा के महत्व' की वास्तविक्ता से दूर जाकर शिक्षा ग्रहण करते हैं या वास्तविक शिक्षा नही ग्रहण करते हैं तो हमारा जीवन वास्तविक शिक्षा के अभाव में बदरंग हो जाएगा। और हम अपने जीवन के उस रंग से प्राप्त होने वाले वास्तविक आनन्द का अनुभव नही कर पायेगें ।
इस प्रकार दोस्तों,हमें अगर 'अपने व अपने समाज के जीवन' को रंगों से सराबोर रखते हुए जीवन के वास्तविक आनन्द का अनुभव करना है तो हमें इस वास्तविक्ता को अपनाना ही होगा कि- जीवन के रंग , वास्तविक्ता के संग ।
धन्यबाद-
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