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Sunday, March 29, 2020

CORONAVIRUS(कोरोना वायरस COVID-19) VS मानव जीवन और वास्तविकता

     आज वर्तमान में हमारा मानव समाज कोरोना वायरस के अचानक हुए हमले से उत्पन्न एक बड़ी महामारी से जूझ रहा है।हम समझपाते इससे पहले ही इस महामारी ने न जाने कितने लोगों को हमसे छीन लिया और हमारे बीच के न जानें कितने लोगों को अपनी गिरफ्त में बराबर लेता जा रहा है।
   हम हड़बड़ाए पर सम्भलने की कोशिश में अपनेआप को असहाय पाकर सावधानीपूर्वक एकमात्र विकल्प वास्तविकता के बिल्कुल करीब जाकर सेल्फडिफेंश के सहारे एकजुट होकर इस महामारी से डटकर मुकाबला कर रहे हैं।महामारी के चुंगल में कैद होकर तड़प-तड़प कर जान देने से बेहतर खुद अपनेआप को कैद कर लेना वास्तविकता का तकाजा समझा।
   हम अगर आत्मा और अंतरात्मा के भेद को समझ सकते हैं तो यहभी भलीभांति समझ सकते हैं कि वास्तविकता का उदगम स्थल हमारी अंतरात्मा ही है।और अंतरात्मा में उत्पन्न सम्बेदना रूपी वास्तविकता के करीब रहकर हम जीवन के प्रत्येक पहलू में ,सदैव विजय प्राप्तकर सकते हैं
   हम आशा ही नही बल्कि बगैर शक के पूरा यकीन करते हैं कि हम वास्तविकता के नजदीक रहकर कोरोना वायरस के इस बड़े हमले को कुछ हद तक नाकाम कर अवश्य विजय प्राप्त कर लेंगे।
   लेकिन दोस्तों सवाल यह उठता है कि क्या हम अन्य महामारियों के हमले की तरह इस महामारी के हमले से भी समय के साथ-साथ बेखबर होकर अन्य  किसी  इसी तरह या इससे बड़े हमले का बैठ कर इंतजार करेगें?
   दोस्तों वह समय मानव जाति पर हुए अचानक महामारी के हमले को भुला देने का नही चिंतन करने का समय होगा।कहीं यह वायरस हमला मानव समाज के लिए खतरे की घंटी तो नही है?कहीं प्रकति हमें संकेत देकर सचेत तो नही कर रही है?कहीं प्रकृति हमें अपने बदलाव का अहसास तो नही करा रही है? स्वाभाविक रुप से कहीं यह कोरोना वायरस प्रकृति के बदलाव का नतीजा तो नहीं है? प्रकृति का हाव-भाव देखकर क्या ऐसा नही प्रतीत होता है कि शायद प्रकृति हमसे कुछ कहना चाहती है?
   हम अहसास तो करते है कि हमारा मानव समाज प्रकृति से दूर होता जा रहा है।लेकिन शायद यह विचार सत्य से परे है।हम जीवन के पहले ,जीवन भर या जीवन के बाद कभी भी प्रकृति से तिल भर एक क्षण के लिए चाह कर भी दूर नही जा सकते। प्रकृति के लिए तो हमसब मात्र मिट्टी का खिलौना हैं।अपने ही अंश की मिट्टी से हमारी काया का निर्माण,फिर उस खिलौने में जान डालकर आनंद की अनुभूति करना और अंत में समय पूर्ण हो जाने पर या इससे पहले ही जैसे-जैसे हम वास्तविकताओं से दूर जाते हैं वैसे-वैसे हमें दुखों व मुसीबतों द्वारा अहसास कराना । विडम्बना है कि हम फिर भी नही समझ पाते हैं।और वास्तविकता से बहुत दूर निकल जाते हैं।मजबूरन मानव रूपी खिलौने को मिट्टी का स्वरूप देकर अपनेआप में विलीन कर लेना प्रकृति का सृष्टिचक्र है।इस प्रकार हम निश्चिन्त रहें, हम प्रकृति से कभी भी दूर नही जा सकते, वास्तव में हम वास्तविकता (REALITY) से दूर जाकर अपने ऊपर स्वंम दुखों या मुसीबतों को दावत देते हैं।
   कोरोना महामारी के रूप में मानव समाज पर आई मुसीबत का कारण भी कहीं हम सबका तमाम वास्तविकताओं से दूर जाना तो नही है?
  उदाहरण के तौरपर साधारणतया हम एक वास्तविकता से स्पस्ट रूप से  रूबरू हो सकते हैं - प्रकृति ने हमें जीवन देने के साथ-साथ भविष्य में अपने जीवन को बीमारियों व वायरस आदि के हमले से बचाव के लिए हमारे शरीर में एक विशेष प्रकार के सुरक्षा कवच की एडवांस में व्यवस्था की है।जिसे बीमारी प्रतिरोधक क्षमता कहते हैं।प्रकति द्वारा प्रदान की गई यही वो अदभुद क्षमता है जो इसप्रकार की अनेक बीमारियों व महामारियों के हमले से हमारे अनमोल शरीर की पूर्णतया सुरक्षा करती है।
   हम अपने ही शरीर की प्रकृति द्वारा प्रदान की गई बीमारी प्रतिरोधक क्षमता के स्वभाव की वास्तविकता को नही समझ पाते हैं और अनैतिक खान-पान व व्यवहार द्वारा वास्तविकता से जाने-अनजाने में दूर होते चले जाते हैं। परिणाम स्वरूप हमारे शरीर की बीमारी प्रतिरोधक क्षमता धीरे-धीरे कम होती चली जाती है । बीमारी या वायरस आदि के हमले के समय हमारे शरीर की यह क्षमता उनका मुकाबला नही कर पाती है और उनसे हार जाती है।परिणाम स्वरूप वायरस आदि हमारे शरीर पर हावी हो जाते हैं और हमारे शरीर के सिस्टम को पूणतया बीमार कर देते हैं।
   इसप्रकार दोस्तों हम समझ सकते हैं कि हम खुदअपने, अपने परिवार,अपने देश,अपने मानव समाज के जीवन की सुरक्षा के प्रति सजग हैं तो हमें वास्तविकता के करीब रहकर अपने अनमोल शरीर की बीमारियों से सुरक्षा के प्रति प्रथम उपचार के तौर पर प्रकृति द्वारा प्रदान की गई बीमारी प्रतिरोधक क्षमता को एक अभेद किले के समान मजबूत बनाना होगा।और अच्छा होगा हम मेडिसिन का सहारा न लेकर प्रकृति के सहारे अपनी इस क्षमता को स्ट्रांग लेबल पर हमेशा बनाये रखें।और इसके साथ-साथ समय-समय पर इसकी जांच या परख करते रहें।साधारणतया हम समझ सकते हैं कि अगर हम जल्दी- जल्दी बीमार हो रहे हैं तो हमारे शरीर की बीमारी रोधक क्षमता का लेबल बहुत डाउन हो गया है।या हमारे शरीर में मामूली घाव हो जाता है या कोई चोट लग जाती है और सफाई रहने के वावजूद वह बगैर दवा के जल्दी ठीक नही होता है तो समझ लेना चाहिए कि हमारे शरीर की बीमारी प्रतिरोधक क्षमता बहुत कम हो गई है।दोस्तों यह हमारा ब्यक्तिगत कर्तव्य होते हुए भी अपने परिवार के प्रति , अपने समाज के प्रति ,अपने देश के प्रति ,अपने मानव जाति के साथ-साथ मानवता के प्रति प्रथम कर्तव्य है।
   दोस्तों इस प्रकार आज वर्तमान जीवन के हर पहलू में हम सब तमाम वास्तविकताओं से दूर जाकर अनेक प्रकार की परेशानियों व दुखों को स्वंम दावत दे रहे हैं।प्रकति हमसे पुकार-पुकार कर कहना चाह रही है,प्रकति का संदेश है - वास्तविकता के पास रहें-वास्तविकता के साथ रहें।तो आओ हमसब मिलकर कदम से कदम मिला कर वास्तविकता की ओर चलें।
  
धन्यबाद-

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